सुंदरलाल बहुगुणा (Sunderlal Bahuguna) जीवन परिचय :-
सुंदरलाल बहुगुणा (Sunderlal Bahuguna) का जन्म 9 जनवरी, 1927 को मरोड़ा गाँव - टिहरी गढ़वाल में हुआ था. मात्र 13 साल की उम्र में टिहरी के महान क्रांतिकारी अमर शहीद श्रीदेव सुमन के संपर्क में आने के बाद सुंदरलाल बहुगुणा (Sunderlal Bahuguna) के जीवन की दिशा बदल गई। श्रीदेव सुमन से प्रेरित होकर वह बाल्यावस्था में ही आजादी के आंदोलन में कूद गए थे। सुंदरलाल बहुगुणा (Sunderlal Bahuguna)वह व्यक्ति हैं, जिसने भारतीयों को पर्यावरण की रक्षा के लिए पेड़ों को गले लगाना सिखाया था । सुंदरलाल बहुगणा ने अपनी पत्नी विमला नौटियाल के सहयोग से ‘पर्वतीय नवजीवन मण्डल’ की स्थापना की थी. सुंदरलाल बहुगुणा (Sunderlal Bahuguna) 1970 के दशक में उत्तरी भारत में शुरू हुए चिपको आंदोलन( Chipko Movement ) के महान नेताओं में से एक थे. सुंदरलाल बहुगुणा (Sunderlal Bahuguna) तथा चंडी प्रसाद भट्ट(Chandi प्रसाद Bhatt) के नेतृत्व में 1970 के दशक में हिमालयी क्षेत्र में चिपको आंदोलन( Chipko Movement ) में पुरुषों और महिलाओं ने लकड़ी के ठेकेदारों को पेड़ काटने से रोकने के लिए पेड़ से लिपटकर पेड़ों को काटने से बचाने की कोशिश की थी व उसमें वह कामयाब भी हुए थे. चिपको आंदोलन( Chipko Movement ) ने दुनिया के सबसे ऊंचे पहाड़ों में पर्यावरण संकट से हुई तबाही को दुनिया के ध्यान में लाया। सुंदरलाल बहुगुणा (Sunderlal Bahuguna) 1981 में सरकार की वन नीति के खिलाफ अनशन पर बैठ गए, जिसके परिणाम स्वरुप सरकार द्वारा उत्तराखंड में पेड़ों की व्यावसायिक कटाई पर 15 साल का प्रतिबंध लगा दिया गया था । फिर वर्ष 1983 में सुंदरलाल बहुगुणा (Sunderlal Bahuguna) ने पर्यावरणीय गिरावट की ओर देश-दुनिया का ध्यान आकर्षित करने के लिए हिमालय में 4,000 किमी (2,500 मील) की यात्रा की। सुंदरलाल बहुगुणा (Sunderlal Bahuguna) को वृक्ष मित्र भी कहा जाता है. उन्हें 1981 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री पुरस्कार तथा वर्ष 2009 में पर्यावरण के लिए पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में बहुगुणा जी को पुरस्कृत किया था । इसके अलावा उन्हें कई बार पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। अपने एक इंटरव्यू में बहुगुणा जी ने कहा था "हम पृथ्वी के प्रति, प्रकृति के प्रति हिंसा कर रहे हैं। हम प्रकृति के कसाई बन गए हैं।" सुंदरलाल बहुगुणा (Sunderlal Bahuguna) अपने सम्पूर्ण जीवन में पर्यावरण के संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करते रहे. उनका जीवन पेड़ और पहाड़ों को समर्पित रहा. 21 मई, 2021 में कोरोना के कारण, ऋषिकेश एम्स में 94 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गयी. पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा (Sunderlal Bahuguna) का निधन भारत ही नहीं, दुनिया भर के पर्यावरण प्रेमियों के लिए एक बड़ा झटका है। बहुगुणा जी अपने जीवन में प्रकृति को बचाने के लिए हमेशा संघर्ष करते रहे और जूझते रहे।,चाहे टिहरी बांध का आंदोलन हो, चाहे पेड़ों को बचाने के लिए चिपको आंदलन हो . "धरती की पुकार"(Dharti ki Pukar ) तथा ‘भू प्रयोग में’ बुनियादी परिवर्तन की ओर’ (Bhu prayag Men Buniyadi Parivartam ki Aur) उनकी प्रमुख कृति हैं ।
सुंदरलाल बहुगुणा (Sunderlal Bahuguna) से जुड़े मुख्य तथ्य:-
जन्म - 9 जनवरी, 1927 ( मरोड़ा गाँव - टिहरी गढ़वाल )
मृत्यु - 21 मई, 2021 ( कोरोना के कारण, ऋषिकेश एम्स में )
पिता का नाम - अम्बा दत्त बहुगुणा
माता का नाम - पूर्णा देवी
पत्नी का नाम - विमला नौटियाल
वृक्ष मित्र - सुन्दर लाल बहुगुणा को कहां जाता है।
सुन्दर लाल बहुगुणा को दिये गये पुरस्कार निम्नलिखित हैं-
1- पद्म श्री पुरस्कार - 1981 में
2- राष्ट्रीय एकता पुरस्कार - 1984 में
3- वृक्ष-मानव पुरस्कार - 1985 में
4- जमना लाल बजाज पुरस्कार - 1985 में
5- शेर-ए-कश्मीर पुरस्कार - 1987 में
6- सरस्वती सम्मान - 1987 में
7- पद्म विभूषण पुरस्कार - 2009 ( पर्यावरण के लिये )
8- विश्व गौरव सम्मान - 2020
कृतियाँ-
- "धरती की पुकार"(Dharti ki Pukar )
- ‘भू प्रयोग में’ बुनियादी परिवर्तन की ओर’ (Bhu prayag Men Buniyadi Parivartam ki Aur)